Thursday, 31 May 2012

Vote for Neo dalit

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Wednesday, 2 May 2012

‘‘खासकर मुसलमान होने का सजा न मिले’’



मेरा नाम मोहम्‍मद ईसा आज़मी, उम्र-20 वर्ष, पुत्र-मो0 इसमाइल आज़मी, मं0नं0- S3/190E-2A, उल्फत बीबी का मजार, अर्दली बाजार, वाराणसी का निवासी हूँ। मैं काशी हिन्दू विश्‍व विद्यालय में बी00-द्वितीय वर्ष का छात्र हूँ।

कल मैं ट्राउंस कोचिंग से घर के लिए अपने दोस्त अज़हर अब्बास के साथ बजाज मोटर साईकिल से निकला था। मैं गाड़ी के पीछे बैठा चला आ रहा था कि दैनिक जागरण मोड़-नदेसर चैराहा पर मेरे घूटने से ट्रैफिक जाम होने के कारण वहाँ के दुकानदार का एक्टिवा (दो पहिया गाड़ी) से लड़ गयी और वह गिर गयी। मैं गाड़ी से उतरकर उसको उठाने लगा, वहाँ पर उस गाड़ी का मालिक भी आ गया, उसने अज़हर (मेरे दोस्त) की गाड़ी की चाभी निकाल लिया। मैंने उससे गाड़ी की चाभी मांगी, इस पर वह बोला-‘‘मेरे गाड़ी का नुकसान भरो,’’ मैंने-हाँ कहा, फिर भी वह चाभी नही दे रहा था। थोड़ी बात बढ़ी, तब तक वह एक थप्पड़ मेरे बायां गाल पर दे मारा। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और पीछे धकेल दिया, तब तक पीछे से एक और आदमी निकला और मुझे मारने के लिए हाथ चलाया, लेकिन उसे भी हम रोक लिये। मेरा दोस्त भी उन लोगों को पीछे धकेल रहा था। किसी प्रकार वे दोनों वहाँ से हटकर अंदर दूकान में गये और एक अपने हाथ में स्टूलतथा दूसरा अंदर दूकान में मारने के लिए समान ढू़ढ़ने लगा। अभी वह स्टूल हम पर चलाता कि पीछे से कोई मुझे मेरा कालर पकड़कर खिंच लिया, मैं तुरन्त पलट कर देखा, वह पुलिस वाला था, उसके वर्दी पर तीन स्टार लगी थी, नाम नही पढ़ पाये। बाद में पता चला कि सी00 दशाश्वमेघ, वाराणसी थे। सी00 को देखकर दोनो दुकानदार रूक गये।

अचानक सी00 द्वारा खींचने पर मैं घबरा गया, कुछ समझ में नही आ रहा था, सी00 हमारे चेहरे पर चार-पाँच थप्पड़ जोर-जोर से मारने लगे और हम अपनी बात बताते रहे, लेकिन वह नही सुन रहे थे। वे लगातार बोले जा रहे थे, ‘‘ज्यादा बोलोगे, चुप रहो,’’ और चेहरा पर थप्पड़-थप्पड़ मारते रहे। हमारे दोस्त को हमसे भी ज्यादा मारे। हम डर से चुप थे और अपने दोस्त का मुँह जबरदस्ती बंद किया। तभी पीछे से दुकानदार बोला-‘‘सर ये दोनों बैग में बंदूक रखे है, गोली चलाने की बात कह रहे थे।’’ सी00 उनकी बात सुनकर हाथ के ईशारा से चुप कराया और सदर पुलिस चैकी को फोन कर सूचना दिया। फोन की बात खत्म होते ही हमारा दोस्त डरते हुए बोला-‘‘सर, ये लोग झूठ बोल रहे है, मेरे पास कुछ भी नही है तथा ना ही मैने ऐसा कुछ कहा है, हम लोग बी0एच0यू0 के छात्र है।’’ इतना सुनते ही सी00 बोला-‘‘तुम लोग बी0एच0यू0 के छात्र हो’’ और लगातार उसको थप्पड़ों से मारने लगे, बोल-‘‘बी0एच0यू0 के छात्र सबसे ज्यादा बदमाश होते है।’’ उसी दौरान वहाँ दो मोटरसाईकिल से चार पुलिस वाले सदर पुलिस चैकी से आये। सी00 से कुछ आपस में बातचीत किये और वहाँ से एक मोटरसाईकिल पर हम दोनो को ट्रीपल लोडिंग करके सदर पुलिस चैकी ले गया। रास्ते भर चालक पुलिस वाला हम लोगों से कुछ भी नही बोला। वहाँ पर दोनो दुकानदार भी आया। हम लोगों को बैठाया तथा ए0के0 सिंह (दो स्टार) चैकी इंचार्ज बोला-‘‘क्या हुआ था,’’ तुरन्त विपक्षी पार्टी बोला-‘‘ये दोनों गोली मारने की बात कह रहे थे और जिहाद करने को बोल रहे थे।’’ तभी दूसरा आदमी बोला-‘‘निकालो, बंदूक निकालो, कहाँ रखे हो, बैग से निकालो बंदूक।’’ इस पर अजहर बोला-भाई झूठ क्यों बोल रहे है, हमने कब ये सभी बाते बोला है। दूकानदार बोला-‘‘देखिए, कैसे जुबान लड़ा रहा है, इसका ताव देखिए।’’ उसी दौरान मैने एस0पी0 विजिलेंस को फोन लगाया, उनको झट से घटना बतायी, जो मैने अपने बड़े भाई मूसा से SMS द्वारा नम्बर प्राप्त किया था। हम एस0पी0 विजिलेंस को बोले कि चौकी इंचार्ज है, इनसे बात कर लिजिए। चौकी इंचार्ज हमसे पूछा-कौन लगता है तुम्हारा और फोन लिये-आफ कर जब्त कर लिये। दोस्त का फोन पहले ही जब्त कर चुके थे।

उसके बाद फिर वे दोनो दुकानदार जिहाद वाली बात छेड़ रहा था, इस पर मैने कहाँ-‘‘झूठ मत बोलिए, यह सब सुनकर मुझे हँसी आ रही थी, इसलिए थोड़ा मुस्कुरा कर बोला-आप लोग बड़े होकर ये क्या बोल रहे है।’’ इसी पर चौकी इंचार्ज बोला-‘‘हँस रहे हो और अंदर से लाठी निकाला, पहले दोस्त को मारे, क्योकि वह हमसे आगे खड़ा था, उसके बाद हमें पहली लाठी दायी तरफ पीठ तथा दायी बाह पर लगातार लाठी से मारते रहे। दोनो टांगो की आगे की हड्डी पर मारे, दोनो हाथ के बाह पर मार रही थी। वह छः फूट के आदमी चार फूट के लाठी से खींच-खींच कर मार रही थी। यह हमारे साथ जिंदगी में पहली बार हो रही थी। हमें कुछ सूझ नही रहा था, ये लोग इतना बेरहमी से क्यो मार रहे है, समझ ही नही पा रहे थे।

उसके बाद भी मन नही भरा तब मेरे बालों को खींच-खींचकर चेहरा पर थप्पड़ों से मारा तथा जमीन पर पटक कर लात से भी मारे। मेरे मुँह से लगातार यही निकल रहा था कि क्यों मार रहे है सर, लेकिन वे सुन नही रहे थे। मैं अपना दोनों पैर पकड़कर बैठ गया, तब बोले-नाटक करते हो, नाटक कर रहे हो साले और दो लाठी बाह और पीठ पर मारा। उस समय लगभग दोपहर के दो या तीन बज रहे थे।

अभी उन बातों को बताकर गुस्सा आ रहा है, वही सब दिमाग में चित्र की तरह घूम रहा है। उस समय मैं चुप-चाप खड़ा रहा, क्योकि हर बात पर वे हमें मार रहे थे। कुछ देर बाद रिश्तेदार लोग चैकी में आये, वे लोग गुस्सा में थे, यहाँ तक कि अजहर की पूरी किताब फाड़ डाली, बोले-‘‘पढ़ाई अब छोड़ दो, यही सब देखने को रह गया है।’’ उस समय चौकी इंचार्ज नही थे। वहाँ उस समय केवल दो होमगार्ड उपस्थित थे। अब रिश्तेदार लोग विपक्षी से माफी मांगने को बोले-हम लोग उन से माफी मांगे।

डेढ़-दो घंटे बाद चैकी इंचार्ज आये, आते ही उन्होंने विपक्षी से बोला-‘‘क्या करना है ? आप कुछ करे या न करे हमतो ।ऽ। लगायेगे ही।’’ इस पर विपक्षी बोला कि सुलह करा दिजिए, हमें नही कुछ करना है। 

उसके बाद सुलह हो गया, फिर हम लोग घर चले आये। किसी को हम नही बताये कि हमारे साथ क्या हुआ। अगर सभी जानेगें, तब हमारा छवि खराब होगा। आज तक हम किसी से लड़ाई नही किये। चौकी में हमें बहुत अफसोस हुआ, पहली बार लगा कि आज़मी और मोहम्मद होना बूरा है। इसी नाम के कारण इतना प्रताड़ना हुआ, क्योकि पुलिस इंचार्ज जब हमसे नाम पूछा था, तब हमने नाम बताया, उसका चेहरा कुछ बदल गया था। 

घर आते समय मन में यही सोच रहे थे कि दुकानदार कि गाड़ी न उठाकर वहाँ से भाग जाते, तब अच्छा रहता। 

अभी भी अजीब-सा महसूस हो रहा है, क्या करे समझ में नही आ रहा है। रोज हम कोचिंग और विश्वविद्यालय जाते है, उसी पुलिस चौकी से गुजरना पड़ता है, डर लगता है कि आगे भी हमें पकड़ न ले, यही सोचकर अजीब लग रहा है।

वर्दी वालों को देखकर डर लगता है कि किसी भी बात पर पकड़ ले, मारने लगे, इससे बहुत ही भयभीत हूँ।

हम चाहते है कि वर्दी वाले वर्दी का काम करें। वे किसी को भी नही मारे, क्योकि यह हक उनको नही है। खासकर मुसलमान होने का सजा न मिले। हमारे जैसा व्यवहार किसी और के साथ न हो। हमें इंसाफ मिले और दोषी पर न्यायोचित कार्यवाही हो। अगर कुछ संदेह है तो जाँच करा लिया जाए।


संघर्षरत पीडि़.त - मो0 ईसा आज़मी
साक्षात्कारकर्ता - उपेन्द्र कुमार

Tuesday, 1 May 2012