Sunday, 18 August 2013

जनमित्र न्यास/मानवाधिकार जननिगरानी समिति का सोसल आडिट: 2013




जनमित्र न्यास/मानवाधिकार जननिगरानी समिति जो एक सामाजिक संगठन है जमीनीस्तर पर वंचितों, दलितों अल्पसंख्यको के साथ पिछले 20 वर्षो से भारत के विभिन्न जगहों पर लगातार लोगो के मानवाधिकार को संरक्षित करने का काम कर रही है | संस्था आज मानवाधिकार संरक्षण के रूप में पूरी देश दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी है | संस्था किसी भी तरह का कोइ भी सरकारी आर्थिक सहायता नहीं लेती है | संस्था देश विदेश से विभिन्न दानदात्री संस्थाओं से अपने कार्य को करने के लिए लेती है

आज 18 अगस्त २०१३ को संस्था के सभी आय व्यय को जनता और प्रशासन के सामने सोसल आदित के रूप में रखा | संस्था ने अपने इस वित्तीय वर्ष का पूरा लेखा-जोखा, बिल-बाउचर, बैलेंस शीट सभी के समक्ष प्रस्तुत किया | जिसमे वाराणसी शहर के अलावा वाराणसी के हरहुआ, बडागांव, पिंडरा, काशीविद्यापीठ, अराजीलाईं, चिरईगांव ब्लाक के साथ ही अलीगढ़, अम्बेडकरनगर, मुरादाबाद, मेरठ, सोनभद्र, झारखंड से आये विभिन्न समुदाय के लोग उपस्थित थे | साथ ही इस सोसल आडिट में अन्य संस्था के लोग भी शामिल थे | संस्था के फाईनेंस मैनेजर अजय और उनके साथी उमेश और अजीत ने इस सोसल आडिट में संस्था के इस वित्तीय वर्ष अप्रैल २०१२ से मार्च २०१३ का पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत किया | लोगो ने प्रश्न पूछा बिल बाउचर, बैलेंस शीट देखा |  आय-व्यय के साथ ही  संस्था की संपत्ति का भी पूरा व्यौरा सभी के समक्ष रखा |संस्था में विभिन्न परियोजनाओ में कार्य हेतू सामान्य श्रेणी के 21 % मुस्लिम ३६ % और पिछड़ी अनुसुचित जाति  43% है | जिसमे ६०% पुरुष और 40% महिला स्टाफ की नियुक्ति है, संस्था स्टाफ की नियुक्ति किसी धर्म या जाति के आधार पर नहीं होती बल्कि उनके योग्यता एव कार्य क्षमता के अनुरूप होती है, परन्तु संस्था हमेशा ये प्रयास करती है की महिलाओ, अति वंचितों, दलितों, पिछडो एवम् अल्पसंख्यको को पूरा मौका प्रदान करती है
इस सोसल आडिट में संस्था के महासचिव डा0 लेनिन ने अपील की  इसी तरह सरकार और अन्य सामाजिक संस्थाए संस्थाए भी अपना सोसल आडिट जनता सरकार के समक्ष रखे जिससे पारदर्शिता लोकतंत्र और कानून का राज स्थापित हो सके  |

इसके साथ ही संन्था के मैनेजमेंट टीम के डा0 राजीव सिंह , शिरीन शबाना खान अनूप श्रीवास्तव ने संगठात्मक मैनुनल जिसमे संस्था के कार्य करने संस्था में नियुक्ति कैसे होती है, काम का मूल्यांकन कैसे होता है किस आधार पर पदोन्नति होती है और संस्था से जुड़े सभी स्टाफ का वेतन क्या है, संस्था PF में रजिस्टर्ड है और  संस्था को ISO सर्टिफिकेट भी प्राप्त है इसको भी सभी के समक्ष रखा |  

कार्यक्रम का संचालन  संस्था की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुती ने किया और धन्यवाद ज्ञापन संस्था के गोवार्निंग बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र प्रताप सिंह ने दिया  | सोशल ऑडिट में गोवार्निंग बोर्ड के सदस्य रागिब अली, इफ़्तेख़ार, शकुंतला, नीता, संध्या समेत लगभग १५० लोगों ने भाग लिया|

 

Tuesday, 6 August 2013

PVCHR: 18 May: Lenin Raghuvanshi

PVCHR: 18 May: Lenin Raghuvanshi: Recognition for an Indian. Proud to be a part of PVCHR. We draw a new World History in 365 days. A contemporary five-minute piece on th...

Friday, 19 July 2013

WEAVING DREAMS, LIVING IN NIGHTMARE: SITUATION OF BANARASI SAREE WEAVING SECTOR OF VARANASI

The present paper looks into the situational analysis of weavers of Banarasi saree, Varanasi, Uttar Pradesh. The life of weavers is characterized by abject poverty, chronic malnutrition, varied health hazards and even hunger deaths and suicides. In-put cost is unbearable for many and profit is taken by middlemen. Globalization has severely affected economically vulnerable small weavers pushing them below poverty line. State machinery is apathetic and whatever schemes and programmes exist, fail to do any good to weavers who are battling hard to keep this one of the finest legacies of Indian culture alive. Situation of women and children is worse. Women are engaged in mundane work of thread-cutting, zari-filling and the like and are paid merely Rs.10-15 per day for 12-16 hours of work. Children are denied schooling to speed up saree-production. Suggestive interventions are highlighted in the paper.