महिलायें सदियों से हमारे समाज में प्रताड़ना की शिकार होती रही है। वह जब अपने एक और अधिकार
के लिए लड़ती है तो समाज में उन्हे तरह-तरह की प्रताड़ना मिलती है, फिर
भी वह इन तमाम मुश्किलो का सामना कर अपनी मंजिल तय ही कर लेती हैं।
मेरा
नाम सुशीला देवी उम्र 32 वर्ष हैं। मेरे पति स्व0
राजकरन पटेल है। मै अशिक्षित हूँ। मै सरकारी प्राथमिक विद्यालय में खाना बनाने का
काम करती हूँ। मै ग्राम-नयापुरा, थाना-घुरपुर, ब्लाक-चाका, तहसील-करछना, जिला-इलाहाबाद
की रहने वाली हूँ।
मेरा
दुबारा विवाह 14 फरवरी, 2005 को
स्व0 राजकरन पटेल से हुआ था शादी के बाद से ही मेरे
ससुराल वालों द्वारा मुझे सताये जाने लगा। मेरे पति को उन लोगों द्वारा मारा-पीटा
जाता था और उन पर यह दबाव बनाया जाता था कि हमे छोड़ दे। मेरे पति की पहली पत्नी को
भी ससुराल वालों के दबाव के कारण छोड़ना पड़ा था। मेरे पति का स्वभाव मेरे प्रति
अच्छा था। वह हमेशा मेरा साथ देते थे। यह बाते उन लोगों को बर्दाश्त नही होती थी।
जिसमें से कुछ जमीन हम लोगों को लिए दी गयी थी। वह जमीन रेलवे में चली गयी। जिसका
मुआवजा सरकार द्वारा मिला जिसे मेरे ससुर ने ले लिया था। हमारे पास न अब कोई जमीन
थी न ही कोई पैसा। मेरे पति जो बनी मजदूरी करते थे और मै जो कमाती थी उसी से मेरे
परिवार का खर्च चलता था।
एक
दिन मेरे पति ने मेरे ससुर से कहा बाबूजी दो हजार रुपया हमे दे दिजिए वह कई दिनों
तक गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उन्होंने एक रूपया भी नहीं दिया। 4 मई, 2013
शनिवार के दिन मै बाबूजी से बोली बाबूजी उन्हें पैसा दे दिजिए वह बहुत परेशान है, तब
उन्होंने कहा अभी उसे और तुम्हें बहुत रोना और परेशान होना है। यह बात कहकर वह कही
चले गये। रविवार को भी बाहर रहे। सोमवार के सुबह मेरे पति मुझसे चाय पीने के लिए
कुछ पैसा माँग रहे थे। मैने अपने टोक में से दस रुपये का नोट छोड़ कर दिये। वह चाय
के पीने चले गये। कुछ देर बीत गया समय बहुत ज्यादा होने लगा तब आस-पास वालो से
पूछे भईया मेरे पति को देखो हो। तब सबने यही जबाव दिया नही आते होगे उनका इन्तजार
करते-करते शाम हो गयी। इस समय मेरा दिल घबराने लगा। हम बिना खाये-पीये इन्तजार
करती रही। पता नहीं उस दिन मन के अन्दर से बहुत बेचैनी हो रही थी। देखते-देखते शाम
हो गयी। मै अपने घर पर ही थी तभी गाँव के ही एक लोग आये बोले तुम्हारा आदमी खत्म
हो गया।
मुझे
उस समय कुछ समझ में नहीं आ रहा था। यह बात सुनते ही मै पागलो की तरह बाहर दौड़कर
उसके पास आयी, तो घर के बाहर उनकी लाश पड़ी थी, उनके
आँखों से खून निकल रहा था। ऐसा देखकर लग रहा था कि अभी कुछ समय पहले उसके साथ कोई
र्दुघटना हुई है। मैं भर निगाह देख ही नही पायी कि मेरे ससुर ने मुझे ढकेल दिया और
ले जाकर कमरे मे बन्द कर दिया। मै उनसे रोती गिड़गिड़ाती रही मुझे मै कही उन्हे अपने
आखों से जीभर कर देख लेने दिजिए लेकिन वह एक भी नहीं सुने उनके सभी रिश्तेदार और
आस-पास के लोग देख रहे थे। किसी ने हमारी ममद नही की मुझे बाहर से सिकड़ी लगाकर वह
लोग मेरे पति की लाश लेकर चले गये, पता
नहीं उन लोगों ने उनका कफन दफन किया था या नहीं। मेरे ससुर ने अपने रिश्तेदार और
दामाद को पहले से खबर दे दी थी। मैं अन्दर से रोती चिल्लाती रही किसी ने मेरी एक
भी नही सुनी। इनकी मौत की खबर मेरे मायके वालो को भी नहीं दी। कुछ देर बीत जाने के
बाद तब पास के ही लोगों ने दरवाजा खोला। मैं उस समय रोती गिड़गिडाती रही लेकिन मेरा
आँसू पोछने वाला कोई नही था। मै अपने आपको अकेला महसूस कर रही थी। जब उन लोगो ने
मुझे बन्द किया था तो उस समय ऐसा लग रहा था कि कैसे बाहर आ जाऊॅ कोई भी जल्दी से
दरवाजा खोल दे मै तड़प रही थी। अभी भी उस बात का दुख है आखिरी बार उन्हें जीभर के
देख नहीं पायी।
मेरे
ऊपर इतनी बड़ी आफत आयी थी किसी ने मुझे सहारा नही दिया। दुसरे दिन पास-पड़ोस के मदद
से मायके खबर भेजी व लोग आये तब मुझे ले गये।
मेरे
पति जब घर से निकले थे सही सलामत थे उनकी साजिश कर हत्या करायी गयी। पुलिस ने भी
इस मामले की जाँच नहीं की उनकी एक्सीडेन्ट से मौत हुई थी। इस बात का भी जाँच नहीं
हुई। मैने घुरपुर थाने में एक प्रार्थना पत्र दिया कि मेरे पति की मृत्यु कैसे हुई
इस मामले की जाँच हो। तब वहा भी पैसा देकर मेरे ससुर ने मामले को रफा-दफा कर दिया।
मुझे यह समझ में नही आ रहा था कि मेरे ससुर अपने बेट की मौत पर अपना मुँह क्यो
बन्द किये है।
कुछ
दिन मायके रहकर दौड़ धूप किया कोई हल नहीं मिला फिर वापस अपने ससुराल काम करने चली
गयी। कुछ दिन तक ठीक रहा फिर मेरे ससुर ने परेशान करना शुरू कर दिया। वह मुझे
डराने धमकाने लगे कि यहा से भाग जाओ नही तो तुम भी मर जाओंगी यह सब सुनकर मेरा मन
बहुत घबराने लगा पहले तो पति का सहारा था, जब
वह हमे मारते और हमारे ऊपर अत्याचार करते थे। हमें घर से भगा देते थे। तब हम लोग
चुपचाप घर छोडकर अपने मायके चले आते कुछ दिन गुजार कर फिर वापस चले जाते आये दिन
मेरे जेठ और उनका लड़का मेरे पति को मारता रहता था। तब हम दोनो एक दुसरे कर सहारा
बनते थे। अब तो मै बिल्कुल अकेली पड़ गयी हूँ। कहा जाऊॅ मायके वाले भी गरीब है पिता
के गुजरने के बाद माँ बीड़ी बनाकर गुजारा करती है। एक भाई है जो मजदूरी करता है अभी
दो बहनो के शादी की जिम्मेदारी भाई पर ही है। अगर उनके पास जाती हूँ। तो मै भी
उनके ऊपर बोझ बन जाऊगी। यही सोचकर मैं अपने ससुराल मे ही उनके अत्याचार सहते हुए
रहने लगी। दिन पर दिन वह हमे धमकाने लगे कि छोड़कर चली जाओ नही तो मुझे भी मारी
जाओगी जब यह सुनती थी तो बहुत तकलीफ होता था रोती थी मन में डर भी था कि हमे अकेला
पाकर वह लोग मार न डाले लेकिन मन में यही ठान लिया कि अब मै दुखियारी को अपनी लड़ाई
लड़कर यही अपना जीवन गुजर बसर करना है। भगवान ने मेरी बड़ी परीक्षा ली है। एक बार
ससुराल वालो के अत्याचार से छोड़कर चली आयी लेकिन अब दुसरी बार उनके अत्याचार को
नही जाऊगी। मैने एक मानवाधिकार संस्था की दीदी की मदद से प्रोबेशन कार्यालय में
प्रार्थना पत्र दिया। वहा हमारी और ससुर की पेशी हुई। वहा भी अधिकारी के सामने
ससुर ने हमारे अपना हक हिस्सा देने से इन्कार कर रहे थे। वह वहा भी हमे झूठा ठहरा
रहे थे। अधिकारी सर से उन्होंने मोहलत ली की हम कुछ दिन बाद बताये गे। 11
दिसम्बर, 2013 को तारीख मिली। अधिकारी कार्यालय से
घर जाने के बाद वह मुझ पर तमाम आरोप लगाने लगे। गन्दी-गन्दी गालिया देने लगे और
कहने लगे की हम हिस्सा नहीं देगे। चाहे जो कर लो उनकी बात मै चुपचाप सहती रही
अन्दर से डरती रही कि फिर कुछ मेरे साथ अनहोनी न करे।
जब
अगली तारीख पर हम प्रोबेशन कार्यालय गये तब मेरे ससुल वहा दो वकील लेकर गये थे। वह
मुझ पर तमाम आरोप लगा रहे थे। लेकिन वहाँ पर हमारे हक में फैसला किया गया। ससुर ने
जून, 2014 में खेत को तीन हिस्से में बराबर बटवारा किया।
कुछ पैसा बैंक में फिक्स है पूरा होने पर उसमें भी हक देने की बात कही है। मुझ
दुखियारी को इससे बहुत राहत मिली है। समय का इन्तजार है खेती बारी मिलने पर मै
उसमें उपज कर अपना जीवन गुजार सकेगी। मेरे पास कोई बच्चें नहीं है कम से कम इसके
सहारे मै अपनी जिन्दगी बिता सकती हूँ।
अभी
भी डर लगता है। रात को नींद नहीं आती है पति की हमेशा याद आती है एकदम अकेला महसूर
करती हूँ। मन हमेशा अशान्त रहता है। मन में थोड़ी सी आशा जगी है।
मैं
चाहती हूँ जो मेरे ससुर ने कबुला है वह एक हिस्सा मुझे मिले। जिससे मेरे साथ न्याय
हो।
सघर्षरत
पीड़िता _ सुशीला
साक्षात्कारकर्ता _ फरहद शबा खानम्
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