Thursday, 29 March 2012

पुलिस यातना से संघर्षरत पीडि़त का स्व व्यथा-कथा



मेरा नाम विनोद कुमार गुप्ता, उम्र-28 वर्ष, पुत्र-श्री राम जी गुप्ता है। मैं मो0-सिपाह, थाना-कोतवाली, जिला-जौनपुर (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला हूँ। दस वर्ष से हम ड्राइवरी का काम कर रहे है।

वर्तमान में जौनपुर के ही महेन्द्र सेठ का निजी गाड़ी चलाता था, दिनांक 23 जनवरी, 2010 को पूर्व की तरह ही उनके बेटे (अजय सेठ) विक्की को वाराणसी लेकर आये और चौक पर उतरकर उन्होंने गाड़ी मैदागीन खड़ी करने को बोला, हम गाड़ी मैदागीन पर खड़ी किये तथा उनके फोन का इन्तजार करने लगे। लगभग दस बजे तक जब उनका फोन नही आया, तब हम अपने मोबाईल से 9918982059 से मिस्ड काल किया, उधर से फोन आयी और उन्होंने कहा, जहाँ चैक पर हमें उतारे थे वही गाड़ी लेकर आओं। वहाँ पहुँचने के बाद हमें 12:00 बजे तक इन्तजार करना पड़ा, उसके बाद वे अपने मामा व एक दुबला-पतला सा लम्बा लड़का के साथ आये, लड़का को कुछ हाथ में दिये और चलने को कहा। उसके बाद हमलोग मामा जी के घर शिवपुर उतार कर जौनपुर के लिए कुहरा में धीरे-धीरे चल रहे थे। पिण्डरा के आगे लगभग 2 किमी. एक सिल्वर रंग कि कार (Indica) हमारे साथ सटकर चल रही थी, जिसका नम्बर हमें बस UP50 H ध्यान में है, आगे का नम्बर भूल गये है। थोड़ी दूर साथ चलने पर जहा मकान एक भी नही था, दोनों तरफ पेड़ और सुनसान जगह था, उसी गाड़ी में से एक व्यक्ति रिवाल्वर की मुठिया दिखाते हुए रोकने का ईशारा कर रहा था और अचानक गाड़ी को दरेरते (ठोकर) हुये आगे लाकर खड़ा कर दिया। हमारी शीशा पर मुठिया से प्रहार करके खोलने को बोला, हम शीशा खोले ही थे कि उसने चाभी अपने कब्जे में लेकर दरवाजा खोलकर हमें उतारा और चार-पाच थप्पड़ जड़ दिया। उस समय दिमाग झनझना गया, कुछ समझ में नही आ रहा था। वे लोग चार आदमी थे, तीन तगड़ा और एक दुबला-पतला। हमें बिना बोले मारने के बाद सेठ जी के माथे के ऊपर रिवालवर सटाकर उनका सोने का चेन, तीन-चार अंगुठी, नकदी व ओवर कोट उतरवा लिया, हमारा भी पाँच सौ रुपया ले लिया तथा दोनों का मोबाईल जब्त कर लिया।

हम दोनों को लूटने के बाद सेठ जी को गाड़ी में ही छोड़कर चाभी लेकर हमें अपने गाड़ी में बैठाया और फूलपुर मार्केट के आगे दायी तरफ उतारकर पुनः वह गाड़ी वाराणसी के दिशा में चल दिया। जब वे लोग हमें गाड़ी से उतार रहे थे, तब हम गिड़-गिड़ाकर बोले, भैया हमें किसी मकान के पास उतार दो, इस पर धमकी देते बोले थे, ‘‘चुप रह नही तो मार कर फेंक देंगे।’’ हम घबराकर चुपचाप वही उतर गये।

गाड़ी में वे लोग सेठ जी का ओवर कोट के पाॅकेट चेक कर रहे थे। उसमें से भी एक रिवाल्वर निकला, इस पर एक आदमी बोला, ‘‘उसे वहीं ठोंक (मार) देते तो अच्छा रहता।’’ बाद में सुनने में आया कि गाड़ी से झोला भी उठाया गया था, लेकिन हमने झोला उठाते नही देखा था।

सुनसान सड़क पर उतरने के बाद कुछ सूझ नही रहा था कि क्या करे, क्या न करे, कुछ समय बाद एक 407 गाड़ी जो सब्जी लादे थी, रुकवाये उसी से जौनपुर आये। बीच में एक जगह जब कुहरा व ठंड ज्यादा लग रही थी, ड्राइवर तलवार सिंह त्रिमुहानी के आगे मड़ई के पास चाय की दुकान पर रोका, वहाँ कुछ समय रूक कर 4:30-5:00 बजे जलालपुर निकले। हमने यहा अपनी बची पैसा से दो चाय पिया। वह हमें वाजिदपुर त्रिमुहानी पर उतार दिया, वहा से हम रिक्शा से घर पहुँचे। छोटा भाई दरवाजा खोला, अंदर सभी परिवार भयभीत व घबराये थे, महिलाएँ रो रही थी। हमारे पहुचने के पहले ही मालिक महेन्द्र सेठ फोन पर पापा को पूरी घटना बताए तथा बदमाशों द्वारा हमें उठाकर ले जाने की बात कहकर बोले, ‘‘उसे ढ़ूढ़ रहे है, अगर घर पहुँच जाए तो बताना।’’ हमारे पहुँचने के कुछ समय बाद उनका फोन आया। उन्होंने पिता जी से कहा कि उसे बैठाकर रखना हम अभी बताते है क्या करना है। कुछ ही समय बाद फूलपुर थाना के दो सिपाही सेठ जी के छोटा लड़का के साथ आया, सिपाही प्यार से ही पूछे कि ठीक हो, कुछ हुआ तो नही, उसके बाद हमें गाड़ी पर बिठाकर थाना ले आये। रास्ते भर हम सोच रहे थे कि पुलिस वाले हमें बहुत मारेंगे, यह सोच-सोचकर और ज्यादा घबराहट हो रही थी।

वहा पर सेठ जी के भाई का लड़का अपने गाड़ी में बैठा था, उसने हमें बुलाया घटना के बारे में पूछा, सभी बातें बता ही रहे थे कि S.O. साहब हमें बुलवाये और आते ही दो-चार थप्पड़ चेहरे पर मारा और बोले, ‘‘बताओं क्या और कैसे हुआ’’ हमने सारी बाते उन्हें बताई। इस पर वे बोले, ‘‘तुम्हारा गिरोह है, तुम इसमें शामिल हो, झूठ मत बोलो, तुम अपना घर क्यों गये?स पर हम बोले, ‘‘यही गलती हो गयी सर कि हम घर चले गये, तब वे बोले कि यह गलत बात है, तुम गलत हो, तुम्हें वे लोग घर तक छोड़े है, बताओं गहना व रिवाल्वर कहा है।

बाद में तहकीकात हुआ, चाय वाला हमें पहचाना और उसने कहा भी हाँयहाँ चाय पीया था। फिर भी वे लोग हमें उस दिन से लगातार 1 फरवरी, 2010 के शाम तक अपने पास रखा।

पहला दिन S.O. साहब बातचीत करके हवलदार से बोले, इसे अंदर रूम में बिठाओं, हमें मुंशी के पास बिठाया गया, सेठ F.I.R. लिखवा कर चले गये। हमसे कुछ भी नही बोले। अन्य दिन थाने पर आकर धमकी देते थे, ‘‘सच-सच बताओं नही तो तुम्हारे परिवार को गोली मार दूँगा। बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा।’’

हम वही दिन भर बैठे रहे, शाम को केवल चार रोटी व थोड़ी सी सब्जी खाने को मिला। आधा घंटा बाद S.O. साहब कमरा में ले गये और बोले-‘‘दिवार से सटकर पैर फैलाकर बैठ जाओं,’’ डर के मारे हम उसी तरह बैठ गये। उस समय हम समझ गये कि अब हमारे साथ मार-पीट करेंगे। यह सोचकर उनसे हाथ जोड़ने लगे, अनसुना करके वे बोले, इस पर बेलन चलाओं। दो पुलिसकर्मी हमारे जांघ पर लाठी रख दिये, दो सिपाही मेरा हाथ पकड़े तथा एक सिपाही दोनों पैरों के बीच में आकर खड़े हो गया। यह देखकर हम सोचे कि लाठी पूरा पैरों पर बेलन की तरह चलाया जायेगा, अब मेरा हड्डी व नस बर्बाद हो जायेगा। लेकिन मेरे सोच के विपरीत जांघ पर रखी लाठी पर पैरो के बीच खड़ा सिपाही एक पैर से कूदने लगा। हम बिना पानी की मछली की तरह छटपटाने लगे जैसे लगा हमारा प्राण निकल गया। यह हरकत तीन बार किया गया, अभी आगे और होता। इससे पहले हम जोर लगाकर हाथ झटके में छुड़ाये और S.O. साहब के पैर पर गिर कर छोड़ने के लिए गिड़-गिड़ाने लगे, उसके बाद हमें छोड़ दिया गया तथा दो कैदी के साथ कोठरी में डाल दिया गया, वहा शौच की बू आ रही थी, क्योंकि कमरा में ही शौच करने के लिए बना था, किसी प्रकार का बल्ब या रोशनी की सुविधा नही थी, पूरा फर्श गिला लग रहा था, उसी फर्श पर तीन कम्बल बिछा हुआ था तथा एक कम्बल हमें आढ़ने के लिये मिला। लगभग आधी रात तक दर्द से कराहते रहे, फिर धीर-धीरे नींद आ गयी।

फिर सुबह हमें थाना के पीछे मैदान में लाया गया, S.O. बोले ‘‘इसको अब पुलिसिया भाषा में समझायेंगे,’’ और ईशारा पाते ही हमारा हाथ पीछे से बांध दिया गया और दूसरा छोर पेड़ की टहनी से लटका दिया गया। हमारा हाथ जितना ऊँचा उठता शरीर भी ऊपर खींच जाता, जब वे लोग देखे की जमीन से पैर थोड़ा-सा ऊपर है उन लोगों ने रस्सी को पेड़ की तना से बांध दिया तथा मेरा शरीर हिलाने लगा। जब मेरा हाथ ऊपर हो रहा था, लग रहा था की अब हाथ मुड़कर ऊपर हो जायेगा और हम अपंग हो जायेगे, दर्द इतना की हम कह नहीं सकते, उस पर मेरा शरीर हिलाया जाता था और S.O. साहब जली मोमबत्ती मेरे पैर की पंजा पर चुवा रहे थे। यह सब दो-तीन मिनट चला फिर हाथ खोल दिया और बोला अपना हाथ आगे करके दोनों पंजा को जोड़ों’’ हमने हाथ आगे किया, बहुत दर्द हो रहा था। हाथ जोड़ने पर बोले, ‘‘यहा आओं बैठों’’ हम जमीन पर बैठ गये और हाथ आगे की तरफ करने लगे बहुत मुश्किल हो रहा था, फिर भी डर से धीरे-धीरे हाथ आगे किये, ये लोग एक से एक नुक्शा जानते है। हम जमीन पर बैठे थे कि उन्होंने हाथ की बंधी मुठ्ठी जमीन पर रखने को बोला और पैर से कुचलने लगे। उस समय हम कुछ नही बोले केवल रो रहे थे। आज भी बाँह के ऊपर छुने पर सुन्न-सा लगता है व हड्डी में दर्द रहती है। पंजा को छुने व देखने पर एहसास होता है कि इसे कुचला गया है, जो अब धीरे-धीरे ठीक हो रहा है। उस दिन इतना होने के बाद भी उन्होंने कहा पिलास लाओ इसका नाखून उखाड़ेगे, तब यह सच बतलायेंगा। यह सुनकर पुरा शरीर सनसना गया और नाखून उखड़ने की पीड़ा सोच कर आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था। लेकिन पिलास नही आया और हमें गाड़ी में बैठाकर पुलिस लाइन स्थित मनोरंजन कक्ष में लाये, और यहां भी जमीन पर सुलाकर कमर से जांघ तक 15-20 बेल्ट मारा गया, हम किसी तरह C.O. साहब का पैर पकड़ लिये। वहा पर इनके साथ अन्य थाने के भी पुलिस कर्मी उपस्थित थे। C.O. साहब हमें उठाये और बोले ‘‘इसका कपड़ा उतारो।’’ पुलिसकर्मी आगे बढ़े और फटी शर्ट उतारने लगे, हम डर से पैंट उतारा और जंघिया पर आ गये, तभी पुलिसकर्मी को हमारा जंघिया उतारने के लिए बोला गया हम अपने से उतारने ही वाला थे कि एक पुलिसकर्मी झट से खींचकर फाड़ दिया। उसके बाद हमें नंगे ही जमीन पर तीन-चार लोग मिलकर पटक दिये। एक आदमी गर्दन, दो आदमी हाथ और दो आदमी पैर पकड़ा और एक आदमी फिर से कमर व जांघ तक बेल्ट (पट्टा) से मारने लगा। हम चिल्ला रहे थे, लेकिन कोई नही सुन रहा था। वे मारे जा रहे थे, लगातार पुरी ताकत से हर मार के साथ पूछे, ‘‘बताओं कहां है,’’ हम रो रहे थे और कह रहे थे कि हमें नहीं मालूम सर, लेकिन कोई सुनवाई नही हो रही थी, यह देखकर व डरकर हम अपना एक मित्र का नाम बता दिये, उसको भी पकड़ कर लाया गया। उसे भी पट्टे से मारा गया, उसके बाद दोनों आस-पास बैठे थे, तब उसने हमसे कहां, ‘‘हमें क्यो फँसाये’’, हमने कहा, ‘‘डर से तुम्हारा नाम ले लिया’’, फिर जब वे लोग हम दोनों को मारने आये तब हम बोले, ‘‘सर, यह निर्दोष है, इसे छोड़ दीजिए, डर से इसका नाम ले लिया था’’ इस पर उसे तो छोड़ा गया, लेकिन हमें और मारा गया। चार-पाँच मिनट बाद C.O. साहब बोले, अब मत मारों और मुझे कपड़ा पहने को बोला, किसी तरह हम थर-थर कांपते हुए, अच्छा से खड़ा भी नही हो पा रहा था, अपना फटा-चिटा कपड़ा पहना। S.O. साहब को बोले,‘‘ अभी थाना ले जाओं सुबह फिर लेकर आना। उस समय लग रहा था की हम कहा फॅस गये, मर जाना इससे अच्छा रहता, हमें आत्म हत्या करने का विचार भी आया।

जब हम लोग जीप से जा रहे थे, बीच में किसी ढ़ाबा पर चाय पिलाया और थाने ले आये। केवल चाय पर पूरा दिन गुजारना पड़ा, हमें बंद कर दिया गया, खाली पेट ही रात भर गुजारे। सोने से पहले दर्द बहुत ज्यादा हो रहा था, बर्दास्त नही हुआ, तब आवाज देकर सर-सर, हमें कोई दर्द की गोली दे दिजिए, कोतवाल साहब गोली दिये और बोले, ‘‘ज्यादा तकलीफ हो रहा है,’’ हाँ कहते हुए हमने गोली लिया, गोली खाने से कुछ राहत मिला और दस मिनट बाद नींद भी आ गयी थी।

अगले सुबह S.O. साहब आये और बोले, ‘‘इसे खाना खिला दो,’’ भोजन में पुड़ी जैसी छोटी-छोटी चार रोटी व आलू-गोभी का सब्जी मिला। खाना खाने के बाद हमें फिर पुलिस लाइन लाया गया। आधा घंटा बैठाकर पूछ-ताछ किया गया, हम निर्दोष थे, कोई जवाब नही दिये, तब पुलिस लाइन के बीचों-बीच मैदान में नीम के पेड़ के तना से सटाकर हमारा दोनों हाथ सामने से दो सिपाहीं खींचा, उसके बाद S.O. साहब हमारे पीछे वाली हिस्सा पर लाठी मारने लगे, जिसमें तीन लाठी रीढ़ की हड्डी पर लगी, जिसमें आज भी तकलीफ है। पिटाने के बाद हम जमीन पर गिर गये, हम गिड़गिड़ा रहे थे, हमें छोड़ दिजिये सर, लेकिन दुबारा फिर उसी तरह खड़ा करवाकर दस-बारह लाठी मारे, तब C.O. साहब बोले, ‘‘छोड़ दो,’’ एक होम गार्ड को हमारा हाथ पकड़कर पुरी गार्डेन टहलाने को बोले। उस समय हमारा दिमाग काम नही कर रहा था, कुछ सोचने समझने जैसी स्थिति नहीं थी। केवल रोये जा रहे थे और वर्दी वालों से छोड़ने के लिए प्रार्थना कर रहे थे।

घूमाने के बाद हमें अपने आगे जमीन पर बैठने के बोला, चाय-नाश्ता आया, हमें भी केवल चाय दिया गया, उसी समय एक दरोगा साहब हमें अलग ले गये तथा कहने लगे, ‘‘हम अपनी बच्ची की कसम खा रहे है, तुम्हें इनाम का पच्चास हजार रूपया दिलवायेंगे, तुम्हें छोड़ देंगे, हमें सही-सही सब कुछ बतला दो।’’ हम बोले, ‘‘सर हम भी कसम खाकर बोल रहे है कि निर्दोष है। गिड़-गिड़ा रहे है, चार दिन से मार खा रहे है।’’ तब वे गुस्सा होते हुए बोले, ‘‘तुम झूठ बोल रहे हो।’’ हम बोले, ‘‘हम दो साल की बच्ची का कसम खा रहे है, सर हम निर्दोष है।’’

तब उन्होंने कहा, ‘‘जाओ, हम तो तुम्हारा मदद करना चाह रहे थे, लेकिन तुम ऐसें नही बातलाओंगे।’’ उसके बाद हमें थाना लाया गया। 9:30 बजे रात को खाना खाये, नींद नही आ रही थी, इसलिए बैठे थे। 12:00 बजे के आसपास S.O. साहब बैठे देखकर बोले, ‘‘क्यो’’ बैठो हो, सोऐ नही, हम बोले, नींद नही आ रही है।

28 जनवरी, 2010 को नाश्ता करने के बाद S.O. साहब हुक्म दिये कि दोनो पैर फैलाकर, मोड़कर तथा हाथों को भी फैलाकर मुर्ति की तरह खड़ा हो जाओ। हाथ नीचे आया तो लाठी पडे़गी या सीधे खड़ा हुए तब लाठी पड़ेगी। हाथ नीचे होने पर हथेली पर लाठी से सिपाही मारते थे। मेरा बायां हाथ बचपन में टूट गया था, जिससे बहुत परेशानी हो रही थी। इतना सहने के बाद जीने की इच्छा मर गयी, हम फिर से आत्म हत्या करने के लिए सोचें, लेकिन ये लोग मरने भी नहीं देंगे। बीच-बीच में टहलाकर फिर वैसे ही खड़ा कर देते थे।

इतना करने के बाद S.O. साहब बोले, ‘‘अब इसे मारों-पीटों नहीं, ‘हाइसे सोने मत देना।’’ हमें 30 जनवरी के शाम तक सोने नहीं दिया गया, झपकी लेने पर लाठी से मार कर जगाते थे, हम पानी थोप-थोप कर परेशान थे। 30 तारीख को शाम में हमें सोने की स्वतंत्रता मिली। शाम में पिता जी आये, बातचीत किये, एक कागज पर दोनों का हस्ताक्षर करवा लिया गया तथा बोले, ‘‘कल आना,’’ इस पर पिताजी बोले, ‘‘सर, हस्ताक्षर तो हो गया, अब छोड़ दे।’’ S.O. बोले, आज छापा मारना है, अगर कोई पकड़ा गया, तब पहचान करेंगा, इसलिए कल आना।’’ पिता जी लाचार होकर चले गये।

उनके जाने के बाद S.O. हमारा दोनों पंजा पकड़कर ऐंठते हुए बोले, ‘‘अब अंत में सही-सही बता दो,’’ इस पर हम बोले, सर हम निर्दोष है। यह सुनते ही पहले बायां पंजा जोर से ऐठें, उसके बाद दूसरा, पूरा नस ऐंठ गया था, हमने सोचा भी नहीं कि इतना ज्यादा दर्द होगा, आज भी मोड़ने पर दर्द करता है।

हाथ रस्सी से बांधकर पेड़ में लटकाकर, नंगा करके तथा रीड़ की हड्डी पर लाठी की मार याद करके, अपने आप आंसू आ जाती है, मां जब यह देखती है, वह भी रोने लगती है। आज भी बताते समय आंख में आसू आ रहे थे, जब भी पिटाई व नंगा करने की बातों को सोचते है, घृणा होने लगती है। आज तक इतनी बेदर्दी से पिटाते किसी को नही देखा, लेकिन हमारी किस्मत में लिखा था, रूलाई आती है।

उन दिनों में वे लोग हमारे दर्द को देखकर 26 जनवरी, 2010 को अस्पताल (पुलिस लाइन) मेडिकल जाँच के लिए लाये, रास्ते में पुलिस वाले हमसे बोले ‘‘अगर डाक्टर दर्द के बारे में पूछे, तब कुछ भी नही बताना, हमने भी डर से डाक्टर को कुछ नहीं बताया’’

अभी आपसे बातें करके व सभी बातों को बताया, जिससे शरीर एकदम हल्का लग रहा है, मन से बोझ हट गया है, अब हमें कुछ भी हो जाए, हमारी कहानी सबके सामने आए, अब मरने का डर भी नही रहा, अब हम खुशी से परिवार के साथ रह पायेंगे। आपने ध्यान-योग करवाया, जिससे मैं अपना ध्यान सांस पर ही रखने की कोशिश किया, बहुत अच्छा लगा, दिमाग शांत, शरीर हल्का, बहुत अच्छा लगा। हम रोज करने की कोशिश करेगें, जब भी बेचैनी महसूस होगा, करेंगे।

संघर्षरत पीडि़त: विनोद कुमार गुप्ता
साक्षात्कारकर्ता: उपेन्द्र कुमार