मेरा नाम भिखारी साहनी, पुत्र-नथुनी
साहनी है। मेरी उम्र-50
वर्ष है। मै जाति का मल्लाह (पिछड़ी) हूँ। मैं अम्बेडकर नगर (धोबईया), चैकाघाट, थाना-जैतपुरा, जनपद-वाराणसी का निवासी हूँ।
मेरे पाँच छोटे-छोटे बच्चे है। जिसमें सबसे
छोटा बच्चा तीन साल का है। मैं ट्राली चलाकर किसी तरह अपने परिवार व बच्चों का
भरण-पोषण कर पाता हूँ। जब मैं कभी-कभी बिमार पड़ जाता हूँ तो हमारे घर में भोजन के
लिए चूल्हा भी जल नही पाता,
जिससे हमारे
बच्चों की स्थिति बहुत ही खराब हो जाती है। इसको लेकर मैं बहुत चिन्तित रहता हूँ।
हमारे पास प्लास्टिक की चादर से घेराव करके बनायी हुई झोपड़ी थी, जिसमें बरसात के दिनों में पानी आ जाता
था। जिसके कारण दो-दो दिन तक हमारे घर में चूल्हा नही जलता था। हम बच्चों व परिवार
सहित भूखे रहते थे। बच्चों की ऐसी दुर्दशा देखकर हम व हमारी पत्नी सीमा हमेशा
चिन्तित रहते थे।
गर्मी में तपती धूप से बचने के लिए हम पूरा
परिवार मिलकर अपनी झोपड़ी के चारों तरफ मिट्टी डालते थे। इसी बीच हमारी बस्ती में कैश
फार इण्डिया नामक कम्पनी के लोग आये। उन्होंने लोन देने की बात कहीं। मैंने
अपनी पत्नी सीमा से कैश फार इण्डिया के स्कीम पर चर्चा किया और आपस में निर्णय
लिये कि लोन लेकर मकान बनाया जायेगा।
दूसरे दिन हमने कैश फार इण्डिया के लोगों से
मिलकर चैबीस हजार (24,000)
रूपया लिये। हम
और हमारी पत्नी तथा बच्चे मिलकर बड़ी उत्साह से मकान निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
दो माह तक निर्माण कार्य चला। उस समय मैं रात में टाली चलाता था और दिन में मकान
निर्माण कार्यो में बच्चों और पत्नी के साथ लगा रहता था। मेरा मकान बनकर तैयार हो
गया और हम लोग अपने मकान में खुशी-खुशी रहने लगे। हमें उन दिनों बहुत ही खुशी व
उत्साह रहता था कि हम लोगों का सपना पूरा हुआ। हम लोगों को अपना मकान हो गया है।
अपने आप में हम गर्व महसूस करते थे कि मेरे पास मकान है।
लेकिन 29 जनवरी,
2010 की घटना
हमारे जीवन का ऐसा मनहूस दिन था, जो
किसी को न देखना पड़े, मेरी पत्नी की मृत्यु उसी कारण हुआ। उस
सुबह लगभग 8:00 बजे बिना सूचना दिये दो जी0आर0पी0 (रेलवे पुलिस व गार्ड) बस्ती के चारों तरफ घुमने लगे और कुछ समय बाद
लगभग पचास पुलिस वालों के साथ दो अधिकारी आये और साथ में बुल्डोजर वाहन भी आया। जब
हम लोग बुल्डोजर वाहन को देंखे तो पूरी तरह से हैरान हो गये और पूरा शरीर पसीने से
भींग गया तथा हाथ-पैर काँपने लगा। हम उसी समय सोच लिये की अब हम लोग बर्बाद हो
गये। हम लोग अधिकारी व पुलिस के लोगों से रो-रोकर विनती किये की कुछ समय दे दीजिए, ताकि हम लोग अपना सामान बचा सके। लेकिन
हम लोग की विनती का उन लोगों पर तरस भी नही आया और गाली देते हुए एक तरफ से मकानों
को उजाड़ना शुरू कर दिया। उस समय पुलिस के लोग गन्दी-गन्दी गाली भी दे रहे थे और
बोल रहे थे, ‘‘पाँच दिन में पूरी बस्ती खाली कर दो, नही तो हम जेल भेंज देंगे या गोली मार
देंगे’’ और कभी-कभी बस्ती के मकानों को गिराते
समय जोर-जोर से हँस रहे थे।
जिस समय बस्ती का मकान गिर रहा था, उस समय बस्ती में जोर-जोर से महिलायें, बच्चों की चीख-पुकार सुनाई दे रही थी।
देखते ही देखते पूरा बस्ती का मकान गिराकर समतल कर दिया गया। उस समय बच्चें कांप
रहे थे और जोर-जोर से रोते हुये बोल रहे थे कि हम लोग कहा रहेंगे। कोई बच्चों को
चुप करा रहा था, तो कोई महिलाओं को और कोई अपना समान
बचा रहा था। हम लोगों का मकान के साथ-साथ समान भी टूट-फूट कर बर्बाद हो गया। बस्ती
में कई दिनों तक किसी के यहाँ चूल्हा नही जला और हम सब खुले आसमान के नीचे रहने
लगे।
12 फरवरी,
2010 को सुबह
से लगातार बारिश शुरू हो गया। इसलिए पूरे बस्ती के लोग बारिश में भींगकर दिन और
रात बिताये। इस बारिश में हमारे छोटे-छोटे बच्चे भींगकर ठंडी से काँप रहे थे। मेरी
पत्नी सीमा से देखा नही गया। वह बच्चों को बारिश व ठंड से बचाव के लिए बस्ती में
रो-रोकर प्लास्टिक (त्रिपाल) मांगने गई। मगर पूरे बस्ती में कही से भी प्लास्टिक
नही मिला।
बच्चों को भींगता हुआ कष्ट देखकर मेरी पत्नी
सीमा को सदमा लग गया। वह उसी दिन से खाना-पीना छोड़ दी। मेरा घर उजड़ने से सीमा की
हालत बिगड़ती गयी। वह बार-बार कहती रहती थी, ‘‘मकान बनवाने में जो कर्ज लिये है, वह कैसे भरा जायेगा, हमारे
बच्चे अब कहाँ रहेंगे’’ और पुलिस के लोगों की बात बार-बार कहती
थी, ‘‘यह जमीन खाली करना होगा, नही तो जेल भेज देंगे।’’ मैं अपनी पत्नी सीमा को समझाता रहा
लेकिन वह खाना-पीना छोड़कर हमेशा चिन्तित रहती थी। पुलिस के लोग हम लोगों को कभी
भी या किसी प्रकार की इस तरह का सूचना नही दिये थे कि बस्ती खाली कर दो। अगर सूचना
पहले दी होती तो हम लोग अपना सामान कही और रख देते।
15 फरवरी,
2010 सूबह 3:00 बजे मेरी पत्नी सीमा की मृत्यु हो गयी। कुछ देर के लिए मेरी भी
सांसे रूक गयी कि ये क्या हो गया। रेलवे विभाग ने मेरा घर उजाड़ दिया। जिसके सदमें
से मेरी पत्नी सीमा की मृत्यु हो गयी। आज मेरा घर न उजड़ा होता तो मेरी पत्नी सीमा
जिन्दा होती। इस घटना के बाद में हम ठीक से व्यवस्थित नही हो पा रहा हूँ। मैं रोज
की तरह अब अपना काम नही कर पा रहा हूँ। कुछ समय के लिए बाहर निकलता हूँ तो बच्चों
की चिन्ता बनी रहती है कि मेरे बच्चों को कुछ हो न जाय और दूसरी चिन्ता इस बात की
है की कैश फार इण्डिया का कर्ज हम कैसे भर पायेंगे। अगर हम कर्ज न लिये होते तो
मुझे कर्ज चुकाने की चिन्ता न होती।
16 फरवरी, 2010 को हम तहसील सदर, वाराणसी में आवास व आर्थिक सहायता हेतु
तहसीलदार साहब के पास गये तो तहसीलदार साहब ने हमसे ठीक से बात नही किया और हमें
बोले, ‘‘तुम बांग्लादेशी हो।’’ तहसीलदार साहब का व्यवहार व बात हमें
उस समय बिल्कूल अच्छा नही लगा। हम सोचने लगे कि मेरे पास तो राशन कार्ड है और हम
यहाँ पर जन्म से ही रह रहे है तो हम बांग्लादेशी कैसे हो गये। तहसीलदार साहब की
बात मेरे दिमाग में बार-बार गुंज रही है। मैं अत्यन्त दुःखी और निराश होकर अपने घर
आया और बच्चों को देखकर मेरे आंख से आंसू लगातार निकल रहे थे। मैं अपने आंसू को
रोकने की कोशिश करता रहा,
फिर भी मेरा
आंसू नही रूक रहा था।
मैं चाहता हूँ कि मेरे साथ या मेरी बस्ती के
साथ जो कुछ हुआ है उसका इंसाफ हो तथा जाँच कराकर हम लोग के साथ न्यायोचित
व्यवहार किया जाए। हम लोग भी मनुष्य है, और निष्ठुर कार्यवाही पूरी जिंदगी तबाह कर दी।
संघर्षरत पीडि़त - भिखारी साहनी
साक्षात्कारकर्ता - मंगला प्रसाद, आनन्द प्रकाश
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